जब घर से निकलने की थी मनाही, तब बेटियों ने की थी सिंदुआरी आंदोलन की अगुआई, विधा देवी की जुबानी आंदोलन की कहानी-

बात चालीस के दशक की है। बिहार के नवादा जिले के नरहट के सिंदुआरी के किसानों की जमीन को स्थानीय जमींदार ने निलाम करवा दिया था। ग्रामीणों के समक्ष भुखमरी की स्थिति थी। पुरूष जब खेतों में काम करने के लिए जाते थे तब जमींदार के कारिंदे और ब्रिटिश पुलिस अत्याचार करते थे। किसान परेशान थे। कोई सुननेवाला नही था।
तब ग्रामीणों ने स्वामी सहजानंद सरस्वती और पंडित यदुनंदन शर्मा का हाथ पकड़ा। फिर बेटियों बहुओं की अगुआई में सत्याग्रह आंदोलन हुआ था। विधा देवी उर्फ नान्हों देवी उर्फ नानवती देवी लीड की भूमिका में थी। वह 95 साल की हैं। उन्हें अब कम सुनाई पड़ती है लेकिन सिंदुआरी आंदोलन की याद आज भी ताजा है।
अहिंसक आंदोलन के जरिए जमींदारों व ब्रिटिश पुलिस से पाई थी मुक्ति

विधा देवी के मुताबिक, करीब 15-16 बेटियां की एक सेना थी। जब कभी जमींदार के कारिंदे की आने की सूचना मिलती थी, गांव में एक घंटी होती थी जिसे बजा दिया जाता था। बेटियांे औ बहूएं एकत्रित हो जाती थी। आसपास के ग्रामीण भी एकत्रित हो जाते थे।
विधा देवी ने कहा कि पुरूषों के साथ मारपीट किया जाता था। लेकिन महिलाओं की मर्यादा का ख्याल रखते थे। लिहाजा, पुरूष खेत में काम करते थे और बहू और बेटियां खेतों के चारों तरफ झंडा बैनर लेकर खड़ी हो जाती थी। वेलोग वापस लौटने पर मजबूर हो जाते थे। यह मंत्र किसान आंदोलन के अग्रणी नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती और पंडित यदुनंदन शर्मा ने दिया था। अंग्रेज अधिकारी जब आते थे तब उनके समक्ष स्वागत गान गाया करती थी। उस गीत में किसान और मजदूरों का दर्द छिपा होता था।
बेटियों की टीम में मोती देवी, प्रेमलता, रूकमिणी, अनार देवी, शांति देवी, श्यामपरी देवी, सोना देवी, दयामंती देवी, कालो देवी, कमला देवी, माया देवी समेत कई लोग थीं। विधा कहती हैं कि वह पढ़ी लिखी थी, इसलिए संयोजन का काम उन्हें दिया गया था। महिलाएं अहिंसक तरीके से जमींदारों और अंग्रेज की नीतियों का विरोध करती थी। जमींदारों के आतंक से मुक्ति मिली। बेटियों को स्वामी सहजानंद सरस्वती के आश्रम बिहटा में ट्रेनिंग मिली थी।
क्यों हुआ सिंदुआरी सत्याग्रह
सिन्दुआरी में करीब 300 विगहा जमीन थी। किसान जमीन का लगान दे दिया करते थे। लेकिन जमींदार के कारिंदे उस राशि को खा जाया करता था। गांव की सारी जमीन को नीलाम कर दिया गया। किसानों और जमींदारों के बीच विवाद हुए थे। जमींदार के कारिंदे परेशान किया करते थे। आंदोलन के बाद स्थानीय जमींदार इंद्रनारायण परिवार ने समझौता किया। 140 रूपए प्रति विगहा लगान देने के बाद जमींदार से किसानों का जमीन मुक्त हो गया। तीन किसानों की जमीन नीलाम हुई थी। वे लोग जमींदार के पक्ष में काम करते थे। लेकिन उनसबों को नुनचटटो, घुसखोरो और दलालों कहकर मिलाया था।
कौन हैं विधा देवी

विधा देवी सिंदुआरी के दृगोपाल सिंह की बेटी हैं। समुद्री बड़ी और विधा छोटी बहन थी। विधा अपर पास थीं। विधा की शादी गया जिले के वजीरंगंज के कोथर निवासी रामबालक सिंह के साथ हुई थी, लेकिन शादी के कुछ साल बाद ही उनके पति की मौत हो गई थी। विधा देवी के एक पुत्र गणेश नारायण सिंह हैं।