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प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के 161 और आजादी के 71 साल बाद भी गुमनाम रहे एतवा, जवाहिर और फतेह

Exclusive post/Ashok Priyadarshi

प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के 161 साल और भारत की आजादी के 71 साल बाद भी आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभानेवालों की याद नही आई। नही उनके नाम पर कोई मूर्ति स्थापित की जा सकी और नही उनके परिजनों की खोज खबर ली गई। जबकि भारत के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में नवादा के जवाहिर रजवार, एतवा रजवार और फतेह रजवार की उल्लेखनीय भूमिका रही थी। ऐसे गुमनाम नायकों की भूमिका का जिक्र ब्रिटिश दस्तावेजों में उपलब्ध है।

ऐसे गुमनाम नायकों को पहचान दिलाने की पहल बिंबिसार फाउंडेशन ने किया है। बिहार के नवादा जिले के मेसकौर प्रखंड के सीतामढ़ी के राजवंशी ठाकुरबाड़ी परिसर में गुमनाम नायकों की मूर्ति स्थापित की जा रही है। फाउंडेशन के पहल पर तीनों नायकों की सांकेतिक मूर्ति स्थापित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। संस्थापक सदस्य निरज भारशिव ने बताया कि उनकी कोशिश है कि मूर्ति स्थापित कर गुमनाम नायकों का सम्मान किया जाय। कोशिश है कि बिहार के सीएम के अलावा गुमनाम नायकों की जीवन पर लेखन करनेवालों की मौजूदगी में मूर्ति का अनावरण किया जा सके।

कौन हैं एतवा, जवाहिर और फतेह

एतवा, जवाहिर और फतेह रजवार की सांकेतिक तस्वीर

जवाहिर रजवार नवादा जिले के नारदीगंज प्रखंड के पसई गांव के रहनेवाले थे। जबकि एतवा रजवार नवादा जिले के गोविंदपुर के कर्णपुर के रहनेवाले थे। वहीं फतेह रजवार भी नवादा के़े थे। इनके संघर्ष की कहानी का जिक्र ब्रिटिश दस्तावेजों के अलावा बिहार-झारखंड के स्वतंत्रता संग्राम पुस्तक, पटना केपी जायसवाल शोध संस्थान से प्रकाशित प्रज्ञा भारती जैसे किताबों में मिलता है।

अंग्रेजों को किया था परेशान

सरकारी कचहरी, बंगले, जमींदार और उसके कारिंदे की सम्पति विद्रोहियों के निशाने पर था। विद्रोहियों को जब मौका मिलता घटना को अंजाम देने से नही चूकते थे। कई जमींदारों ने विद्रोहियों को समर्थन करना शुरू कर दिया था। तब अंग्रेज अधिकारियों ने विद्रोह पर काबू पाने के लिए विद्रोहियों को चोर और डकैत जैसा नाम देने लगे थे, ताकि विद्रोहियों से लगाव के बजाय लोगों में नफरत पैदा हो जाय। अंग्रेज की इस नीति का नतीजा है कि गांव के लोग भी उनके संघर्ष की कहानी से अंजान हैं।

अंग्रेजों ने किया था मारने का प्रयास

27 सितंबर 1857 को जवाहिर करीब 300 आदमियों के साथ विद्रोह की रणनीति बना रहे थे। तभी अंग्रेज सैनिकों ने गोलियां हमला कर दिया था, जिसमें जवाहिर के चाचा फागू की मौत हो गई थी। कई जख्मी हो गए थे। बाद में जवाहिर की मौत हो गई। इसके पहले 12 सितंबर को एतवा की गिरफ्तारी के लिए अंग्रंेज और जमींदारों की सेना का सकरी नदी के किनारे भिड़ंत हो गई। एतवा बच निकले, लेकिन 10-12 साथी शहीद हो गए।
एतवा की गिरफ्तारी के लिए 200 रूपए का इनाम घोषित किया था। 8 अप्रैल 1863 को करीब दस हजार पुलिस, मिलिट्ी और जमींदार की फौज का अभियान चला, लेकिन एतवा बच निकला था। एतवा के नेतृत्व में 10 सालों तक छिटपुट विद्रोह चला था। बाद में कब मौत हुई। इसका पता नही चला है।

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