रोशनी पड़ते ही बदलने लगता है शिवलिंग का रंग
पूजा करने पर शिवलिंग में दिखता है चेहरा
सर्वेश कुमार गौतम। नवादा
जिले के हिसुआ प्रखंड में कैथिर रेपुरा रोड के समीप मुरली पहाड़ की गोद में दुल्हिन शिवालय है। दुल्हिन शिवालय एक ही परिसर में दो है। दोनों शिवालयों में शिवलिंग से लेकर आर्कटेक्चर व नक्काशी एकसमान है। बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण सास और बहु ने मिलकर करवाया था। इस कारण मंदिर का नाम दुल्हिन पड़ा। हालांकि ये दोनों दुल्हिन कौन थी और कहां की थी यह कोई नहीं जानता। क्योंकि मंदिर अति प्राचीन है। मंदिर में खासियत यह है कि शिवलिंग पत्थर का रंग बदलते रहता है। शिवलिंग का रंग मंदिर में सूर्य की रोशनी के हिसाब से घटता बढ़ता रहता है। मंदिर के पुजारी बैद्यनाथ पाण्डेय उर्फ लाल बाबा के अनुसार सुबह में शिवलिंग का रंग चॉकलेटी रहता है।धीरे धीरे मंदिर में सूर्य की रोशनी के साथ ही शिवलिंग का चॉकलेटी रंग हल्का होने लगता है। उन्होने बताया कि मंदिर में नाग का भी वास है। मंदिर के गर्भगृह में मौजूद दिवाल के तहखाने में नाग देवता को जाते हुए कई लोगों ने देखा है। हालांकि नाग ने अभी तक किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है।मंदिर अति प्राचीन है। उचित रखरखाव के अभाव में मंदिर काफी जीर्णशीर्ण हो चुका है। हाल में ही कैथिर के एक भक्त सुबोध सिंह ने मन्नतें पूरी होने पर मंदिर का रंग रोगन करवाया था। शिवलिंग की एक और खासियत है कि इसमें जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से पूजा करता है उसका प्रतिबिंव शिवलिंग में झलकता है।
धार्मिक विकास मंच के संयोजक मिथिलेश सिंहा बताते हैं कि मंदिर कब बना और किसने बनाया कहीं उल्लेखित नहीं है। बड़े बुजुर्ग सिर्फ यही बताते हैं कि सास और बहु दोनों ने एक एक मंदिर का निर्माण कराया। इसलिए इस मंदिर को लोग दुल्हिन मंदिर कहते हैं। पुजारी लाल बाबा के अनुसार मंदिर टेकारी महाराज की बहुओं के द्वारा बनवाई गई है।
लाल बाबा विगत 23 वर्षों से मंदिर परिसर में रहकर मंदिर की सेवा में तल्लीन हैं। गौरीचक पटना निवासी बैद्यनाथ पाण्डेय उर्फ लाल बाबा हिसुआ में भीएलडब्लू के पद पर कार्यरत थे। उनका कार्यक्षेत्र कैथिर,हदसा व आसपास का गांव था।आते जाते उनकी नजर जीर्णशीर्ण मंदिर पर पड़ी तो वे मंदिर में ही रहकर सेवा करने लगे। सेवानिवृति के पश्चात वे अपने आप को पूर्णत: मंदिर की सेवा में समर्पित कर दिए। वे बताते हैं कि मंदिर में सच्चे मन से आने वाले लोग कभी निराश नहीं होते हैं। भगवान भोलेनाथ सभी की मनोकामना पूर्ण करते हैं।परन्तु दुर्भाग्य है कि लोग नए नए मंदिर बनाने की सोच तो रखते हैं लेकिन पौराणिक धरोहर को बचाने की दिशा में लोग कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं।