बिहार : परियों की कहानी जैसी है पत्रकार सम्मान पेंशन योजना

डॉ अशोक प्रियदर्शी
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जरिए पत्रकारों की पेंशन राशि बढ़ाए जाने की घोषणा की गई है। वास्तव में पत्रकार सम्मान पेंशन योजना श्रमजीवी पत्रकारों के लिए बड़ी खुशी की खबर है। चूकिं यह योजना पत्रकारों के जीवन के आखिरी पड़ाव में उम्मीद की किरण जैसी है। लेकिन ज्यादातर खासकर मुफलिसी पत्रकारों के लिए पत्रकार पेंशन योजना परियों की कहानी जैसी है, जो सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है। लेकिन असल जीवन से उसका कोई वास्ता नही रहता। कुछ ऐसी ही कहानी है बिहार के पत्रकारों के लिए पेंशन योजना की।
ऐसी कहानी इसलिए है कि पत्रकार सम्मान पेंशन योजना का लाभ लेना पत्रकारांे के लिए जटिलताओं से भरा है। ऐसी शर्ते और नियम है कि अधिकतर पत्रकार उस दायरे में आते ही नही। लिहाजा, उन्हें पत्रकार पेंशन योजना का लाभ नही मिल पाता है। चूकिं यह योजना 2019 में लाया गया था। लेकिन जटिलताओं के कारण इसका लाभ सीमित लोगों तक सिमट कर रह गया है। पेंशन योजना का लाभ लेना कितना मुश्किल है, इसे कई वरिष्ठ पत्रकारों ने बयां किया है।
वरिष्ठ पत्रकार राम रतन प्रसाद सिंह रत्नाकर कहते हैं कि पत्रकार सम्मान पेंशन योजना छलावा है। सरकार की सस्ती लोकप्रियता पाने का माध्यम भर है। चूंकि नियम इतना जटिल है कि अधिकतर पत्रकार इस दायरे में आते ही नही है। ऐसे में पेंशन की राशि बढ़ाए जाने का क्या लाभ है। चार-पांच साल पहले चार बार पेंशन के लिए आवेदन भराया गया। फिर भी उन्हें पेंशन का लाभ नही मिला। ऐसे में सोचनेवाली बात है कि इसका फायदा किसे मिलेगा ?
रत्नाकर कहते हैं कि सिर्फ नवादा नही बिहार में गिने चुने पत्रकारों को इस पेंशन का लाभ मिल रहा है। यह संख्या 50 से भी नीचे है। शर्ते इतनी कठोर और पेंचीदा है कि इसका लाभ मेहनतकश पत्रकारों को इसका लाभ मिल सकेगा बड़ा सवाल है। रत्नाकर कहते हैं कि उनका पूरा जीवन पत्रकारिता के लिए समर्पित रहा है। लेकिन सरकारी सिस्टम में खुद को पत्रकार नही साबित कर पाए।

रत्नाकर अकेले पीड़ित नही हैं। वरिष्ठ पत्रकार रामजी सिंह ने मुख्यमंत्री से सवाल किया है कि पहले यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि कैसे और कहां के पत्रकार पेंशन योजना का लाभ लेंने के पात्र है। मै नवादा जिला मुख्यालय से कई चार दशक से अधिक समय से कई अखबारों, चैनल और एजेंसी के लिए रिपोर्टिंग करता रहा हूं। पांच साल पूर्व ही इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन दे चुका हूं। फिर भी इसका लाभ नही मिल पाया है। मैं जानना चाहता हंू मुख्यमंत्री जी कि कौन और कहां के पत्रकार इसके योग्य हैं। अगर ऐसा नही है तो फिर मेरे आवेदन पर अबतक क्यों नही विचार किया गया।
यही नहीं, वरिष्ठ पत्रकार रवींद्रनाथ भैया, मो शमा, राजेंद्र पांडेय जैसे अनेक उदाहरण सिर्फ नवादा के हैं, जो 60 की उम्र पार कर गए हैं। पूरा जीवन पत्रकारिता में समर्पित रहा। उन्हें ऐसे समय में आर्थिक मदद की काफी दरकार है। लेकिन इनमें कई विभागीय जटिलताओं के कारण हिम्मत नही जुटा पाए। जो जुटाए भी वह खुद को पत्रकार की पात्रता नही साबित कर पाए। जैसा कि नवादा के सूचना और जनसंपर्क विभाग के पदाधिकारी अमरनाथ कुमार ने बताया कि पत्रकार सम्मान पेंशन योजना के लिए कुछ आवेदन आए थे लेकिन पात्रता नही पूरी होने के चलते उन्हें इसका लाभ नहीं मिल सका है।
दरअसल, यह समस्या सिर्फ नवादा तक सीमित नही है। बिहार के अधिकतर जिले की कमोबेश ऐसी ही कहानी है। पेंशन पाने के लिए सरकारी मान्यता प्राप्त होना चाहिए। इसके अलावा 20 साल का अनुभव चाहिए। पत्रकारों को सरकारी मान्यता देने की गति पहले काफी जटिल रही है। ऐसे में 20 साल से अधिक अनुभव वाले पत्रकारों के लिए यह शर्ते पूरा करना काफी कठिन साबित हो रहा है। समाचारों के ज्यादातर प्रतिष्ठान मुफलिसी पत्रकारों को कोई प्रमाणिक दस्तावेज नही उपलब्ध कराता जिसके कारण वह खुद को सरकार की नजर में पत्रकार साबित कर सके। ऐसे में ज्यादातर पत्रकारों को दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है।

गौरतलब हो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार पत्रकार सम्मान पेंशन योजना की राशि को 6000 से बढ़ाकर 15000 रुपये प्रतिमाह कर दी है। साथ ही, पत्रकार पेंशन पा रहे पत्रकारांे की मृत्यु होने की स्थिति में उनके आश्रित पति या पत्नी को 3000 की जगह 10000 रूपए प्रतिमाह जीवन पर्यंत दिए जाने की बात कही गई है। नीतीश कुमार की घोषणा के बाद से मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है। ऐसे में कई पत्रकारों ने अपनी परेशानियों के जरिए योजना की सार्थकता पर सवाल उठा दिया है।