शिक्षा मित्र जिनपर है शिक्षा की जिम्मेवारी

अशोक प्रियदर्शी
बात चैदह साल पहले की है। बिहार के नवादा जिले के रोह प्रखंड के कुंजैला स्थित प्राइमरी स्कूल में 300 बच्चों का दाखिला था। उसे पढ़ाने के लिए सिर्फ दो टीचर पदस्थापित थे। पहली फरवरी 2003 को अविनाश निराला को 1500 रूपए मासिक पर शिक्षा मित्र के रूप में 11 माह की संविदा पर बहाली की गई। इसकी अधिकतम मियाद 33 माह रखी गई। शिक्षा मित्र पद पर बहाली के लिए न्यूनतम योग्यता मैट्रिक थी। जुलाई 2006 से 11 माह की अवधि को बढ़ाकर साठ साल कर दिया गया। शिक्षा मित्र के बदले नियोजित टीचर का नाम दिया गया। इसके लिए न्यूनतम योग्यता इंटरमीडिएट कर दी गई। चार हजार रूपए मानदेय कर दिया गया। ट्रेंड टीचर के लिए यह राशि पांच हजार रूपए की गई थी।
देखें तो, पहले से कार्यरत दो पुराने टीचर रिटायर्ड कर गए। 2007 में एक टीचर पदस्थापित किए गए। 2010 से अविनाश इस स्कूल के इंचार्ज हैं। इसके बाद टीईटी पास तीन टीचर की बहाली की गई। लिहाजा, कुंजैला स्कूल में अविनाश समेत पांच टीचर हैं। करीब ढ़ाई सौ बच्चे हैं। अविनाश कहते हैं कि स्कूल बढ़ने से छात्र और टीचर का अनुपात में सुधार हुआ है। निजोजित टीचर पर ही बिहार में शिक्षा व्यवस्था की जिम्मेवारी है। कुंजैला अकेला स्कूल नही है। बिहार के अधिकांश स्कूलों की जिम्मेवारी नियोजित टीचर पर है।
बिहार सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में कुल 69,911 प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूल हैं। बिहार में 6.33 लाख टीचर की जरूरत है। बिहार में करीब 3.48 लाख टीचर की बहाली की गई है। इनमें ढाई लाख नियोजित टीचर हैं। इसमें शिक्षा मित्र के अलावा तीन चरणों में बहाल किए गए नियोजित टीचर शामिल हैं। हालांकि बिहार में छात्र और टीचर का अनुपात 1ः58 है। नेशनल एजुकेशन पाॅलिसी के तहत प्राइमरी स्कूलों में यह अनुपात 1ः40, जबकि आरटीई के तहत 1ः30 निर्धारित है। आरटीई प्रावधानों के मुताबिक, अब भी राज्य में 94.7 फीसदी स्कूल हैं जहां छात्र और टीचर की अनुपात पूरी नही हो पा रही है। यही नहीं, ट्रेंड टीचर का भी अभाव रहा है। देश में 8.1 लाख अनटे्रंड टीचर है। इसमें सर्वाधिक बिहार में एक लाख 73 हजार 167 टीचर हैं।
नियोजित टीचर की समस्याएं
नियोजित टीचर्स की शिकायत रही है कि उन्हें उनके काम का उचित वेतन नही मिलता है। बिहार परिवर्तनकारी शिक्षक संघ के नवादा जिला के अध्यक्ष प्रभाकर कुमार कहते हैं कि उनसबों से बच्चों को पढ़ाने के अलावा मीड डे मील, जनगणना, पशुगणना, बाल पंजी संधारण, बीएलओ, जागरूकता कार्यक्रम समेत कई तरह के कामों में मदद ली जाती रही है। लेकिन उन्हें पुराने टीचर जैसा वेतन भुगतान नही किया जाता है। जबकि काम पुराने टीचर्स से भी ज्यादा लिया जा रहा है।
आंदोलन के बाद बहुत मामूली बढ़ोतरी की जाती रही है। अप्रैल 2010 और अगस्त 2010 में एक-एक हजार रूपए की बढ़ोतरी की गई। सितंबर 2013 में तीन हजार रूपए की बढ़ोतरी की गई जबकि जुलाई 2015 में वेतनमान निर्धारित किया गया। लेकिन टीचर्स की डिमांड समान काम के लिए समानवेतनमान की डिमांड रही है। लिहाजा, टीचर्स व्यक्तिगत और कई संगठनों ने पटना हाइकोर्ट में समान काम के लिए समान वेतनमान के लिए अर्जी दिया है। पिछले हफ्ते 31 अक्टूबर को पटना हाइकोर्ट ने टीचर्स के पक्ष में फैसला दिया है। पटना हाइकोर्ट ने 8 दिसंबर 2009 से समान काम के लिए समान वेतन दिए जाने का आदेश दिया है। इसके लिए तीन माह का समय दिया गया है। यही नहीं, बाकी टीचर्स के समान सातवां पे कमीशन का लाभ दिए जाने का आदेश दिया गया है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
दरअसल, बिहार के टीचर्स और टीचर्स संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के आधार पर पटना हाईकोट मंे याचिका दाखिल किया था। सुप्रीम कोर्ट ने 26 अक्टूबर 2016 को स्टेट आॅफ पंजाब बनाम जगजीत सिंह अन्य के मामले (213/2013) में एक फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी किया था कि किसी कर्मचारी को उसके पारिश्रमिक के कमतर भुगतान के लिए कृतिम मानक का निर्धारण करना एक लोक कल्याणकारी राज्य में असंवैधानिक ही नही बल्कि यह मानवता की नींव की गरिमा पर करारा प्रहार है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि कम वेतन पर कृत्रिम मानकों के तहत कोई कर्मी स्वेच्छा से कार्य नही करता बल्कि आत्म सम्मान और गरिमा की कीमत पर मजबूरी में स्वीकार करता है। क्योंकि वह जानता है कि यदि कम वेतन पर कार्य नही करेगा तो उसके आश्रितों के समक्ष भोजन, आवास और अन्य न्यूनतम बुनियादी आवश्यकताओं की गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाएगी।
सरकार और संगठन में गतिरोध
इधर, पटना हाइकोर्ट के फैसले के बाद बिहार सरकार और टीचर संगठन में तकरार की स्थिति है। मानव संसाधन विकास मंत्री कृष्णनंदन वर्मा ने कहा कि विशेषज्ञो से राय ली जाएगी। उसके बाद विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि पहले जरूरत थी इसलिए नियोजन इकाई के माध्यम से टीचर्स की बहाली की गई। बड़े संख्या में पद खाली थे। लेकिन अब सरकार पहले से अधिक रूपए सरकार दे रही है। ऐसे में उनको जवाबदेही समझनी चाहिए।
दूसरी तरफ, परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वंशीधर ब्रजवाशी ने कहा कि संघ सुप्रीम कोर्ट में कैबियत दाखिल करेगी ताकि शुरूआती लेवल पर राज्य सरकार की अर्जी को खारिज किया जा सके। ब्रजवाशी कहते हैं कि पटना हाइकोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में किया गया है। इसलिए राज्य सरकार को अर्जी का आधार नही बनता है। उन्होंने कहा कि संघ का 9300 से 34800 वेतनमान की मांग है, जो पुराने टीचर्स को मिलता है। इस मांग की पूर्ति के लिए कानूनी लड़ाई से सड़क पर आंदोलन किया जाएगा।
आकड़े क्या बताते हैं-
देखें तो, 2005 में 6-14 आयुवर्ग के 12.5 फीसदी बच्चे स्कूल से बाहर थे। लेकिन यह संख्या अब घटकर 1.72 फीसदी रह गया है। दरअसल, स्काॅलरशिप, डे्रस, मीड डे मील, साइकिल जैसी योजनाआंे के कारण स्कूलों में बच्चों की मौजूदगी बढ़ी है। राज्य में करीब साढ़े तीन लाख टीचर्स है। हालांकि राष्ट्रीय मानक से पीछे है। मानव विकास मिशन के मुताबिक, उपस्थित 32 बच्चों पर एक टीचर की जरूरत है, जबकि बिहार में 35 पर एक टीचर है। ट्रेंड टीचर्स की भारी कमी है।
बिहार राष्ट्रीय साक्षरता दर में भी काफी पीछे है। भारतीय जनगणना 2011 के मुताबिक, भारत की साक्षरता दर 72.9 फीसदी है। इसमें महिला की साक्षरता दर 64.6 फीसदी जबकि पुरूष का 80.9 पीसदी है। बिहार की साक्षरता दर 61.8 फीसदी है। इसमें महिला की साक्षरता 51.5 फीसदी है जबकि पुरूष का 71.2 फीसदी है। उल्लेखनीय पहलू यह है कि 2001 से 2011 के दशकीय बढ़ोतरी में बिहार रिकाॅर्ड उपस्थिति दर्ज कराई है। पिछले पांच दशकों में यह पहला अवसर है जब बिहार 14.8 प्रतिशत साक्षरता दर में बढ़ोतरी दर्ज किया है। इस अंतराल में राष्ट्रीय स्तर पर भी कभी इस तरह का दशकीय बढ़ोतरी नही हुई है।