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राजनीति में जिनकी भाईचारगी का लोग देते हैं मिसाल

डाॅ.अशोक प्रियदर्शी
बात 47 साल पहले की है। 1970 का विधानसभा चुनाव था। कांग्रेस आई की टिकट पर दिवंगत युगल किशोर सिंह यादव की पत्नी गायत्री देवी और कांग्रेस ओ की टिकट पर सहकारिता नेता मथुरा प्रसाद सिंह चुनाव लड़ रहे थे। तब मथुरा सिंह की तरफ से नरेंद्र कुमार चुनाव प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। जबकि गायत्री देवी की ओर से कुंजैला के महावीर महतो जैसे लोग सक्रिय थे। चुनाव जातीय धु्रवों में बंटा था। संघर्षपूर्ण मुकाबला था। मथूरा सिंह हार गए। गायत्री देवी जीत गईं।
चुनाव के बाद महावीर महतो को बैल खरीदनी थी। उनके पास पैसे नही थे। नवादा सेंट्रल काॅआपरेटीव बैंक से लोन लेना चाहते थे। लेकिन बैंक के आॅनररी सेक्रेटरी नरेंद्र कुमार थे। महावीर महतो मिलना चाहते थे लेकिन साहस नही जुटा रहे थे। कई लोगांे ने महावीर महतो को उनसे मिलने का सुझाव दिया। लेकिन वह संकोच कर रहे थे। तभी नरेंद्र कुमार गेट के बाहर निकले। उनपर नजर पड़ी। देखते ही हालचाल लिया। आॅफिस में चाय पिलाई। उसके बाद उनके लोन के आवेदन को मंजूर कर विदा किया।
नरेंद्र कुमार कहते हैं कि उसके बाद महावीर महतो से अटूट रिश्ता कायम हो गया। जबतक जीवित रहे तबतक भाईचारगी निभाई। यही नहीं, महावीर महतो के बेटा से भी यही रिश्ता कायम है।
यही नहीं, गायत्री देवी और नरेंद्र कुमार दो ध्रुव में बंटे थे। लेकिन दोनों के बीच भाभी और देवर के बीच का पवित्र रिश्ता रहा है। नरेंद्र कुमार कहते हैं कि जब कभी होली में आशीर्वाद लेने गायत्री देवी के घर जाया करता था तब शरीर पर बाल्टी भर रंग लेकर लौटना सुनिश्चित था। यही नहीं, पारिवारिक सुख दुख में एक दूसरे के भागीदार रहे हैं। नरेंद्र कुमार के रामनगर स्थित मकान को जब ध्वस्त किया गया था तब गायत्री देवी उनके घर पहुंचकर हर संभव मदद का पेशकस की थीं। कई मौके पर नरेंद्र कुमार भी ऐसी भूमिका में दिखे।
नरेंद्र कुमार का राजनीति में भाईचारगी का अकेला उदाहरण नही है। 1985 में नरेंद्र कुमार जब नवादा से चुनाव लड़ रहे थे। तब उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में कृष्णा प्रसाद थे। लेकिन कृष्णा प्रसाद के पिता जेहल प्रसाद से नरेंद्र कुमार का मधुर संबंध था। उन्होंने चुनाव प्रचार की शुरूआत जेहल प्रसाद के घर पथरा इंगलिश गांव से किया। तब जेहल प्रसाद और कृष्णा प्रसाद घर पर नही थे। लेकिन कृष्णाजी की मां चाय पीने के लिए बोली। इसपर नरेंद्र कुमार ने शर्त रखी कि तबतक चाय नही पिएंगे जबतक आप मुझे जीत का आशीर्वाद नही दे देते। नरेंद्र बताते हैं कि वह दिन आज भी याद है- कृष्णाजी की मां ने कहा था कि सबकी बात नही करता लेकिन मैं अपना वोट आपको जरूर दूंगी। उसके बाद चाय पिलाकर विदा की थीं। संयोगवश वे जीत गए। कृष्णाजी हार गए। वहीं 1990 में वे हार गए और कृष्णाजी जीत गए। लेकिन इस हार जीत के फैसले से भाईचारगी पर फर्क नही पड़ा। कई मौके पर जेहल प्रसाद और उनके बेटे नरेंद्र कुमार के घर पर आए। जबकि कृष्णाजी और जेहल प्रसाद के निधन पर नरेंद्र कुमार उनके घर गए।
ऐसे कई अवसर रहे हैं जब भाईचारगी जाहिर हुआ। नरेंद्र कहते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान कई घरों पर कई दफा प्रतिद्वंद्धियों से मुलाकात हो जाया करती थी। लेकिन मिलकर वोट मांगे। सामाजिकता का भी जवाब नही। दिसंबर 2016 में सीपीआई नेता रामकिशोर शर्मा का निधन हो गया। उनकी मौत की जानकारी मिली। वह उनके गांव मकनपुर पहुंच गए। सीपीआई ने गांव में शोकसभा का आयोजन किया था। इसमें पार्टी का झंडा बैनर था। उस झंडा बैनर से परहेज नही किया। शोकसभा में सरीक हुए और शर्मा को श्रद्वांजलि अर्पित किया। नरेंद्र कहते हैं कि सामाजिक जीवन में व्यवहारिकता ही सबसे बड़ी पूंजी है, इसके बिना व्यक्ति की पहचान अधूरा है।
राजनीतिक दल के प्रति भी गहरी निष्ठा रही है। कई मौके आए जब उन्हें टिकट से वंचित कर दिया गया। लेकिन उनकी दलीय निष्ठा कायम रही। 1995 में कोच विधानसभा का उम्मीदवार बनाया। तब 324 सीटों में अकेला उम्मीदवार थे जिन्होंने यह कहते हुए पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिन्हा राव को टिकट लौटा दिया था कि उन्होंने कोच नही देखा है। चुनाव कैसे लड़ सकता हूं। हालांकि उन्हें चुनाव प्रचार अभियान समिति का संयोजक बनाया गया था। 2006 जुलाई में उन्हें नेशनल कमीशन फाॅर इकोनोमिक बैकवार्ड में सदस्य बनाए गए। जुलाई 2010 तक रहे।

पारिवारिक पृष्ठभूमि
वैसे नरेंद्र कुमार गया जिले के अतरी के वेंकटपुर के मूल निवासी है। लेकिन उनके पिता मोसाफिर सिंह अपने ननिहाल नवादा जिले के सिरदला के कुशाहन में आकर बस गए थे। तीन साल की आयु में उनके पिता की मौत हो गई थी। तब कुशाहन के मथुरा प्रसाद सिंह ने बाप का साया दिया। नरेंद्र कुमार भी उन्हें पिता जैसा सम्मान दिया। नरेंद्र मैट्रिक की पढ़ाई गांधी इंटर विधालय, जबकि पटना काॅलेज से पाॅलिटिकल साइंस विषय से ग्रेजुएशन की। पटना काॅमर्स काॅलेज से लाॅ किया। 11 नवंबर 1965 को वकालत किया।

राजनीतिक अतीत
नरेंद्र 1964 में यूथ कांग्रेस के प्रमंडलीय संयोजक बने। 1967 में कांग्रेस के सदस्य हो गए। 1972 में प्रदेश कांग्रेस कमिटि का प्रतिनिधि बने। 1977, 1980 और 2000 में हिसुआ से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन हार गए। 1980 में जिप अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1981 में टिकट नही मिला। 1985 में नवादा से एमएलए निर्वाचित। 1990 में हार गए। 1995 में टिकट वापस कर दिए। 1992 से अबतक एआइसीसी के निर्वाचित सदस्य हैं। 1998 से 2007 तक कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे।

सहकारी आंदोलन
पहली दफा 1965 में कुशाहन कोआॅपरेटीव सोसायटी के सदस्य बने। 1970 में नवादा को आॅपरेटीव के ज्वाइंट सेक्रेटरी बने। 1971 में बिस्कोमान के डायरेक्टर बने। सबसे युवा डायरेक्टर बनने का मौका मिला था। 1974 में स्टेट कोआपरेटीव बैंक के डायरेक्टर बने। फिर भूमि विकास बैंक, बिहार कोआॅपरेटीव फेडरेशन, बिहार हाउसिंग को आॅपरेटीव फेडरेशन और बिहार राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ के डायरेक्टर रहे। 1985 में नेशनल स्टेट काॅआपरेटीव बैंक फेडरेशन के उपाध्यक्ष बने। मथुरा प्रसाद के निधन के बाद 6 जनवरी 1984 को बिहार स्टेट को-आॅपरेटीव बैंक के चेयरमैन हो गए।

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