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विधवा और बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई लड़ रही पुष्पा

  अशोक प्रियदर्शी
          बतीस साल पहले नवादा जिले के धनवां गांव की पुष्पा की शादी गया के फतेहपुर के धनगांव में लालनारायण सिंह के पुत्र विनोद के साथ शादी हुई थी। तब पुष्पा 13 साल की थी। छह साल बाद उसका दुरागमन हुआ। उसके 3 माह बाद ही पति की बीमारी से मौत हो गई। उसके तीन साल बाद ननद की शादी में ससुराल गई। शादी के कपड़े में छूने के कारण उन्हें अशुभ बताते हुए कपड़े को धुलवाया गया था। यह घटना पुष्पा के जीवन बदल दिया। ससुरालवाले राजी नही थे। लेकिन वह आगे की पढ़ाई की। फिर सामाजिक कार्यों में जुड़ गई। ग्रामीणों ने ताना देना शुरू किया। लेकिन पुष्पा कुरीतियों के खिलाफ अभियान को राज्य स्तर पर नेतृत्व की। पुष्पा से लोग विधवा जैसा कपड़ा, आचरण और खान पान की उम्मीद करते थे। लेकिन पुष्पा ऐसी किसी परंपरा का हिस्सा नही बनी। पुष्पा कहतीं हैं- मैं पसंद का कपड़े पहनती हूं और सार्वजनिक तौर पर मांस मछली खाती हूं।
         11 नवंबर 2011 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पुष्पा को जब मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार दिया जाना था। तब एक दबंग ने पुष्पा के खिलाफ शिकायत कर दिया था। पुष्पा पर पतुरिया होने का आरोप लगा दिया था। पुष्पा इन सब आरोपों से विचलित नही हुई। सरकार ने भी पुष्पा को सम्मानित किया। पुष्पा बाल विवाह का विरोध करती रही। कई विधवा और अंतरजातीय विवाह करवाई। वह मानती हैं कि पिता का सहयोग नही मिला होता तो वह अन्य महिलाओं की तरह धर के भीतर विधवा की जीवन जी रही होती। वह जब टीचर बन गई तब बचे समय में नावार्ड के जरिए सौ समूह का गठन करवाई। इसमें एक समूह को राज्य का बेस्ट समूह का अवार्ड मिला।

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