जब छप गया था साया तब हो गई थी बतंगड.

अशोक प्रियदर्शी
बात 35 साल पहले की है। एक अधिकारी की पत्नी मैट्रिक की परीक्षार्थी थीं। वह वारिसलीगंज महिला काॅलेज में परीक्षा दे रही थीं। लेकिन वह खुद लिखने में सक्षम नही थी। क्योंकि उनकी उम्र चालीस हो गई थी। 20 साल का बेटा था। बेटा भी मैट्रिक पास कर चुका था। अधिकारी की पत्नी गृहिणी थीं। लेकिन अधिकारी अपने प्रभाव से पत्नी को मैट्रिक पास कराना चाहते थे।
तब कदाचार का माहौल नवादा में नही जम पाया था। लेकिन अधिकारी की पत्नी थी इसलिए मातहतों ने मदद पहुंचाने की जिम्मेवारी ले रखी थी। लेकिन मदद करने में अधिकारी की पत्नी का मोटापा काफी कारगर साबित हुआ। वह बहुत मोटी थीं। लिहाजा, अधिकारी की पत्नी को परीक्षा हाॅल के सबसे पीछे का बेंच किनारे में जगह दी गई। अधिकारी पत्नी के बैठने के बाद पीछे का भाग नही दिखता था।
लिहाजा, अधिकारी पत्नी जहां बैठती थी, उसके पीछे उसके पुत्र बैठकर काॅपी लिखा करता था। इसकी जानकारी केन्द्राधीक्षक और वीक्षक को बखूबी थी। लेकिन हाॅल में बैठे लोगों को भी इसकी जानकारी नही हो पाती थी। लेकिन एकबार स्थानीय स्तर के एक स्थानीय पत्रकार परीक्षा का समाचार कवरेज के लिए केन्द्र पर गए थे। पत्रकार ने यह स्थिति देखी। उन्होंने टोका भी। लेकिन लोग टालते हुए निकल गए।
यही नहीं, अगले दिन एक अखबार में खबर छपी कि अधिकारी की पत्नी की साया में उनका पुत्र लिख रहा काॅपी। दरअसल, पत्रकार ने लिखा था साया, लेकिन साया छप गया। इसका गलत अर्थ निकल गया। लोग माखौल उड़ाने लगे। बात का बतंगड हो गया। यही नहीं, अधिकारी ने मुकदमा के लिए थाने में आवेदन लेकर चले गए। लेकिन उस खबर में अधिकारी का नाम और केन्द्र का नाम नही था। इसलिए पुलिस ने यह कहकर मुकदमा नही दर्ज किया कि आप किस आधार पर कह रहे हैं कि यह खबर आपके बारे में लिखा गया है। इसका मतलब यह निकलेगा कि आप खुद नकल को स्वीकार कर रहे हैं। तब अधिकारी आवेदन वापस लिया। इस घटना के बाद बेटे ने परीक्षा हाॅल जाना छोड़ दिया था। लेकिनयह कहानी हर लोगों के लिए चर्चा का विषय बन गया, जो नकल की बात आते ही ताजा हो जाता है।