गढ़ में दफन हो गया श्रीराम के वनगमन से भरत मिलाप का अतीत

अशोक प्रियदर्शी
बात चार दशक पहले की है। अपसढ़ गढ़ की जब खुदाई की जा रही थी तब कई स्तरीय भवन का अवशेष मिला था। भीतियों पर भगवान श्रीराम के वन गमन से लेकर नंदी गांव में भरत मिलाप के दृष्य उकेरे मिले थे। यह चित्र काफी आकर्षक और जानकारी परक थी। लेकिन तब खुदाई रूक गई। लिहाजा, रोचक गचकारी भीतियों पर सिमटा रह गया। कालांतर में गढ़ अतिक्रमण का शिकार हो गया। गढ़ मलवे में तब्दील हो गया। अब उस कलाकृतियों का अतापता नही है। केपी जायसवाल शोध संस्थान के पूर्व निदेशक चितरंजन प्रसाद सिन्हा ने इस चित्रकारी का जिक्र कई जर्नल और किताबों में किया है। लेकिन अब यह अतीत बनकर रह गया है।
हालांकि राज्य सरकार ने राज्य के 29 पुरातात्विक स्थलों को विकसित किए जाने की योजना में अपसढ़ को भी शामिल किया। अपसढ़ संरक्षण समिति के अध्यक्ष युगल किशोर सिंह ने कहा कि विधायक अरूणा देवी के प्रयास से एक म्यूजियम बनाया जा रहा है। सौंदर्यीकरण भी किया गया। दूसरी तरफ, गढ़ की खुदाई और मूर्तियों के बारे शोध नही होने से इतिहास पर धूल पड़ा है। लिहाजा, इतिहास में एक नया आयाम जुड़ने से वंचित रह गया।
अपसढ़ में नालंदा से प्राचीन विश्वविधालय का अवशेष
बिहार पुरातत्व विभाग के तत्कालीन निदेशक डाॅ. प्रकाश शरण प्रसाद को अपसढ़ की खुदाई में अहम पुरातात्विक साक्ष्य मिले थे। डाॅ प्रकाश के मुताबिक अपसढ़ को नालंदा से भी प्राचीन विश्वविधालय के अवशेष होने के संकेत मिले थे। डाॅ प्रकाश ने जिक्र कर चुके हैं कि अपसढ़ के समीप शाहपुर में एक प्रतिमा मिली थी। इसके अभिलेख में ‘अग्रहार’ का जिक्र मिला था। ‘अग्रहार’ शब्द से प्रतीत होता है कि यह स्थान तक्षशिला के समकालीन था। चूंिक तक्षशिला का जिक्र भी अग्रहार के रूप में ही मिलता है। संभव है अपसढ़ भी तक्षशिला की तरह उच्च शिक्षा एवं शोध का केन्द्र रहा होगा।
अंग्रेज विद्वानों ने भी अपसढ़ की प्राचीनता को स्वीकारा
अपसढ़ की ऐतिहासिकता को सबसे पहले 1847 में अग्रेज विद्वान मेजर कीटो ने रेखांकित किया था। अपसढ़ शिलालेख का भी जिक्र किया है। बिहार डिस्ट्क्टि गजेटियर 1957 और एंटीक्यूरीयन रीमेंस इन बिहार किताब से इसकी पुष्टि होती है। यही नहीं, कनिंधम के अलावा 1871 में तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी ए.एम. ब्रोडले और 1872 में बेगलर भी अपसढ़ के महत्व को रेखांकित किया है।
अपसढ़ में दुर्लभ वराह की मूर्ति
अपसढ़ में वराह की दुर्लभ प्रतिमा है। इसके प्रत्येक भाग पर लघु मूर्तियां उत्कीर्ण है। इसमें ऋषियों-मनीषियांे को पूजा अर्चना करते दिखाया गया है। पाश्चात्य अन्वेषक ब्लाॅक ने अपसढ़ में मौजूद वराह प्रतिमा की तुलना मध्यप्रदेश के एरन से प्राप्त प्रतिमा से की है। अपसढ़ में विष्णु के अलावा शिव, पार्वती, भगवती, सूर्य और बुद्ध की सैकड़ों प्रतिमाएं है। कुछ प्रतिमाएं मंदिरों और घरों में स्थापित हैं। जबकि दर्जनों प्रतिमाएं गांव की गलियों में बिखड़ी पड़ी हैं।