खाजे की दुकान में बैठकर दयानंद लिख दी 78 कविताएं

नवादा के न्यू एरिया पातालपुरी के रहने वाले दयानंद प्रसाद गुप्ता ने कन्या भ्रूण हत्या पर बेटी की वेदना को दर्शाते हुए एक कविता लिखी। कविता थी मैं छोटी से तन्हा होती,बेटी के घर की गहना होती…। उनके द्वारा लिखी गई कविता बहुत ही मार्मिक थी। उन्होंने अपनी कविता राज्य सरकार द्वारा दहेज एवं बाल प्रथा जैसे सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध डिमांड किए गए कविता के लिए भेज दी। लेकिन उनकी यही कविता राज्य स्तर पर सलेक्ट हो गई।
-महिला दिवस पर पटना में मिला सम्मान
दयानंद प्रसाद गुप्ता द्वारा लिखी यह कविता राज्य स्तत पर सलेक्ट हुई। दयानंद प्रसाद बताते हैं कि सैकड़ों लोगों ने अपनी रचनाएं महिला विकास निगम को भेजी थी। उसमें सिर्फ दो लोगों की रचनाएं ही चयनित हुई। उन्होंने बताया िकइस रचना के कारण अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर निगम के प्रबंध निदेशक एन विजयालक्ष्मी के हाथों सम्मान दिया गया।
–तीन वर्षों में लिखी है 78 कविताएं
दयानंद प्रसाद नवादा के मेन रोड में खाजा दुकान किए हुए हैं। अपनी दुकान में बैठे बैठे ही कविताएं लिखते रहते हैं। वे बताते हैं कि 2015 से कविताएं लिख रहा हूं। इन तीन वर्षों में 78 से अधिक कविताएं लिख चुके हैं। उन्होंने बताया कि पहली बार आठवीं कक्षा में आतंकवाद के उपर एक कविता लिखी थी। आतंकवादी भैया,क्यों डूबो रहे हो अपनी नैया,देखते नहीं विधवा हो रही है,तेरी ही बहन और मैया। उस वक्त पंजाब में खलिस्तान को लेकर आतंकवाद पनपा हुआ था। तभी यह कविता लिखी थी,और स्कूल में इस कविता को खुब प्रसंशा मिली थी। वे बताते हैं कि 3 वर्षों के भीतर सामाजिक कुरीतियों,आतंकवाद,कश्मीर,पाकिस्तान,देश के नेताओं से लेकर पर्यावरण आदि समस्याएं को लेकर कविताएं लिखी है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर लिखी यह कविता और महिला विकास निगम,यूनिसेफ तथा जेंडर रिसोर्स से मिला सम्मान पत्र जीवन भर याद रहेगा।