अंधविश्वास तोड़ने में आगे आई गांव की महिलाएं और बेटियां

सदियों से ऐसी कई कहानियां थी, जिसके कारण मंदिर का जीर्णोद्वार और पूजा पाठ करने से परहेज कर रहे थे। कई मूर्तियां खंडित हो गई थी। मंदिर जर्जर हो गया। लेकिन 24 फरवरी को ग्रामीणों ने मंदिर में रामलला, भैरोनाथ, नंदी समेत छह मूर्तियों का उस प्राचीन मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कर सदियों पुरानी अंधविश्वास की परंपरा को तोड़ दिया। यही नहीं, मंदिर का जीर्णोद्वार कर उसे बेहद खुबसूरत लुक प्रदान किया। ग्रामीणों ने सामूहिक प्रयास से यज्ञ का आयोजन किया।
इस रूढ़िवादी परंपरा के खिलाफ अगुआई की वजह गांव का एक अर्द्धविक्षिप्त युवक दीपक साव बना है। आठ माह पहले दीपक ने मंदिर में पड़ी एक मूर्ति को यह कहते हुए बाहर फेंक दिया कि जब पूजा ही नही होती है तब यहां रहने का क्या औचित्य है। इसके बाद ग्रामीणों की एक मीटिंग हुई। तभी खंडित मूर्तियों की जगह दूसरी मूर्ति स्थापित करने और मंदिर के जीर्णोद्वार का निर्णय लिया गया।
खास कि सबसे पहले गांव की बेटियां आगे आई है। ग्रामीणों के मुताबिक, मंदिर के जीर्णोद्वार में करीब दस लाख रूपए खर्च हुए हैं। यज्ञ कार्यक्रम को जोड़ दिया जाए तो करीब 30 लाख रूपए खर्च हुए हैं। दिलचस्प कि जिनके बारे में अवधारणा थी कि मंदिर के जीर्णोद्धार से उन्हें नुकसान पहुंचा है वही लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा निभाई। यही नहीं, गांव की महिलाओं और बेटियों ने इसकी अगुआई की। उसके बाद लोग जुड़ते चले गए।
कुशाहन निवासी और पूर्व विधायक नरेंद्र कुमार कहते हैं कि ग्रामीणों में भ्रम थी, लेकिन उस भ्रम के खिलाफ ग्रामीण आगे बढ़े। अनिष्ट होने की वजह अलग थी। अजीब संयोग रहा कि मंदिर का जीर्णोद्वार करनेवालों के साथ कुछ अप्रिय घटनाएं हुई। इसे लोग मंदिर से जोड़कर देखने लगे। बाद में ग्रामीणों ने इसे महसूस किया। लिहाजा, मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई। उसके बाद लोग जुड़ते चले गए। जिस हिमाचल प्रसाद के बारे में कहा जाता है कि पूजा के बाद उनकी पूरी संपति खत्म हो गई थी। लेकिन कुछ ही सालों बाद उस हिमाचल प्रसाद को ससुराल मे काफी जमीन भी मिली थी।