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अंग्रेज स्कूल इंस्पेक्टर ने तिरंगे को देख उनसे पूछा- ‘ह्वाट इज दिस’ तब कृष्णनंदन ने कहा- इट इज माय नेशनल फ्लैग

Exclusive post/Ashok Priyadarshi

बिहार के नवादा शहर के गोनावां में बस गये कृष्णनंदन शास्त्री जी मूल रूप से शेखपुरा जिले के माऊर के रहनेवाले थे। देश को अंग्रेजी हुकूमत से निजात दिलाने के लिए शास्त्री जी के पिता हजारी लाल वर्मा और चाचा गोपाल लाल वर्मा सबकुछ क्रांतिकारियों को सौंप खुद घुमंत जीवन जीने लगे। 20 अक्टूबर 1920 को जन्मे शास्त्री जी की पढ़ाई गया में हुई थी।

गांधीजी के भाषण से वह काफी प्रभावित थे। लिहाजा, स्कूली जीवन से ही शास्त्री जी के दिल में देशभक्ति की गहरी जड़ें जम गयी थी। वह अपनी कमीज पर तिरंगा लगा स्कूल जाने लगे। शास्त्री जी के पुत्र पूर्णेन्दु कश्यप अपने पिता से सुने संस्मरण बताते हैं- एक दिन अंग्रेज स्कूल इंस्पेक्टर ने शर्ट पर लगे तिरंगे को देखकर उनसे पूछा था- ‘ह्वाट इज दिस’। तब कृष्णनंदन शास्त्री ने कहा था- इट इज माय नेशनल फ्लैग। अंग्रेज अधिकारी प्रभावित होकर उनकी पीठ थपथपायी थी।

वह पटना युनिवर्सिटी से मैट्रिक करने के बाद भागलपुर के टीएन जुबली कॉलेज में दाखिला लिया। अधिकतर समय जेल में रहने से इनकी मां ने पुत्र वियोग में दम तोड़ दिया। चाचा जी ने 10 मई 1946 को इनकी शादी नालंदा के मुढ़ारी में स्वतंत्रता सेनानी दंपति अयोध्या प्रसाद और सुमित्रा देवी की पुत्री उर्मिला वर्मा से करवा दी। अयोध्या प्रसाद को उस समय बिहार का गांधी कहा जाता था। शास्त्री जी को शादी का बंधन भी मार्ग से डिगा नहीं सका। न केवल शास्त्री जी बल्कि उनकी पत्नी उर्मिला वर्मा भी आजादी के आंदोलन में जेल जा चुकी हैं।

1942 में कर्पूरी ठाकुर, दारोगा प्रसाद राय, केशव शास्त्री, ब्रजमोहन सहाय, रूद्रदत्त सहित अन्य क्रांतिकारियों के साथ कृश्णनंदन शास्त्री को भागलपुर जेल भेज दिया गया। कृष्णनंदन ने जेल से क्रांतिकारियों को भगाने की योजना बनाई। योजना के मुताबिक चार फाटक के ताले खुल चुके थे। तभी अंग्रेज फोर्स ने उन्हें काबू में कर सेल में डाल दिया। आंदोलन से दूर रहने के लिए अंग्रेज अफसर ने उन्हें पुलिस अधिकारी बनाने और सजा माफ करने का प्रलोभन दिया। लेकिन, वह नहीं माने।

कालांतर में क्रांतिकारियों ने छह फाटकों को तोड़ दिया। सातवां फाटक टूटने ही वाला था कि अंग्रेज टॉमियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। फायरिंग में सौ से अधिक क्रांतिकारी मारे गये थे। शास्त्री जी को भी दो गोलियां लगी थीं। फिरंगियों के सफाये के लिए गुरिल्ला युद्ध का संचालन किया। इनके बढ़ते आतंक से परेशान अंग्रेजों ने विशेष अभियान चलाया तो बचने के लिए इनका अड्डा गंगा नदी बनी। अंग्रेजों के हत्थे न चढ़ें इसके लिए ये हमेशा पोटैशियम साइनाइड साथ रखते थे। वह पत्रकारिता और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किए थे।

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